Saturday, 29 December 2012
Saturday, 22 December 2012
बैलगाडिय़ों की तरफ लौटा आगरा
आगरा। २०१२ के अंत से ठीक पहले और २०१३ के स्वागत में आगरा ने खासे बदलाव आए हैं। जगह -जगह खड़ी बैल, घोड़ा गाड़ी देखकर ऐसा लग रहा है मानों हम आधुनिक युग में नहीं बल्कि आज से ठीक पचास साल पीछे पहुंच गए हैं। एम रोड पर लगने वाले जाम से निपटने के लिए एम जी रोड से ऑटो रिक्शा का संचालन बंद कर दिया गया है। तथा उनके स्थान पर बसों का संचालन किया जा रहा है। लेकि न ऑटो चालकों ने एम जी रोड पर नहीं तो कहीं नहीं के नारे के कारण पूरे आगरा में हर एक चौराहे से ऑटो रिक्शें बंद हो चुके हैं। इसके स्थान पर चलाई जा रहीं जेनर्म की बसें सवारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं पहुंचा पा रहीं हैं। इतना ही नहीं एमजी रोड पर हर एक मिनट बाद लेकिन अन्य रूटों पर आने जाने वालों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा हैं। दुगना किराया देने के बाद भी समय से ऑफिस नहंी जा पा रहे हैं। न तो सिकंदरा से भगवान टॉकीज के लिए और न ही भगवान टॉकीज से राम बाग के लिए याता यात के लिए कोई खास इंतजाम नहीं हैं। जहां भगवान टॉकीज से रामबाग के मात्र पांच रूपए लगते थे वहां बसों द्वारा दुगना किराया यानी दस रुपए बसूले जा रहें हैं। घंटों सड़क पर खेड़ होकर बसों का इंतजार करना पड़ रहा हैं। इसी बीच घोड़ा गाडिय़ां यातायात का साधन बनती नजर आ रही है। भगवान टॉकीज का नजारा ऐसा लग रहा है मानों पुराना दौर फिर से वापस आ गया है। तेज दौड़ भाग करने वाले आगरावासी फिर से धीमी गति पकडऩे पर मजबूर हैं। तीन किलोमीटर का किराया पन्द्रह से बीस रुपए तक वसूला जा रहा है। लेकिन इस सब की परवाह बंद गाडिय़ों में चलने वाले अफसरों के पास कहां हैं। ऑटो चालकों की हड़ताल का सीधा असर मध्यम वर्ग पर पड़ा है। घर से निकलते ही जेब ढ़ीली होती जा रही है। इतना ही नहीं समय से न तो काम पर और न ही घर पर वापसी हो रही है। आगरा के हालातों को देखकर ऐसा लग रहा है मानों इस खूबसूरत शहर को किसी की नजर लग गई है।
Sunday, 2 December 2012
jago grahak jago उपभोक्ताओं के अधिकार
उपभोक्ता जाने अपने अधिकार
ठगी का षिकार बनते हैं लोग
महंगाई के कारण हो रहे हैं मिलावटखोर सक्रिय
ज्यादातर उपभोक्ताओं को नहीं पता होते अपने अधिकार
बाजार में आए दिन नई नई वैराइटी की चीजें देखने को मिल रही है। जिनके द्वारा लोगों को आसानी से ठगी का षिकार बना लिया जाता है। बढ़ती महंगाई के कारण हर कोई परेषान है। महंगाई के कारण ही मिलावटखोर और ज्यादा सक्रिय हो रहे हैं। बढ़ते बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता संस्कृति तो देखने को मिल रही है, लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी है। आज हर व्यक्ति उपभोक्ता है, चाहे वह कोई वस्तु खरीद रहा हो या फिर किसी सेवा को प्राप्त कर रहा हो। दरअसल, मुनाफाखोरी ने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह की परेशानियां पैदा कर दी हैं। वस्तुओं में मिलावट और निम्न गुणवत्ता की वजह से जहां उन्हें परेशानी होती है, वहीं सेवाओं में व्यवधान या पर्याप्त सेवा न मिलने से भी उन्हें दक्कितों का सामना करना पडता है। हालांकि सरकार कहती है, जब आप पूरी कीमत देते हैं तो कोई भी वस्तु वजन में कम न लें। बाट सही है या नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए कानून है। यह स्लोगन सरकारी दफ्तरों में देखने को मिल जाएगा। सरकार ने उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए कई कानून बनाए हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं से पूरी कीमत वसूलने के बाद उन्हें सही वस्तुएं और वाजिब सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। भारत में 24 दिसंबर राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए 24 दिसंबर, 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 लागू किया गया। इसके अलावा 15 मार्च को देश में विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत में इसकी शुरुआत 2000 से हुई।
गौरतलब है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 मेंउत्पाद और सेवाएं शामिल हैं। उत्पाद वे होते हैं, जिनका निर्माण या उत्पादन किया जाता है और जिन्हें थोक विक्रेताओं या खुदरा व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं को बेचा जाता है। सेवाओं में परिवहन, टेलीफोन, बिजली, निर्माण, बैंकिंग, बीमा, चिकित्सा-उपचार आदि शामिल हैं। आम तौर पर ये सेवाएं पेशेवर लोगों द्वारा प्रदान की जाती हैं, जैसे चिकित्सक, इंजीनियर, वास्तुकार, वकील आदि। इस अधिनियम के कई उद्देश्य हैं, जिनमें उपभोक्ताओं के हितों और अधिकारों की सुरक्षा, उपभोक्ता संरक्षण परिषदों एवं उपभोक्ता विवाद निपटान अभिकरणों की स्थापना शामिल है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया कि उपभोक्ता कौन है और किन-किन सेवाओं को इस कानून के दायरे में लाया जा सकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक, किसी भी वस्तु को कीमत देकर प्राप्त करने वाला या निर्धारित राशि का भुगतान कर किसी प्रकार की सेवा प्राप्त करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता है। अगर उसे खरीदी गई वस्तु या सेवा में कोई कमी नजर आती है तो वह जिला उपभोक्ता फोरम की मदद ले सकता है। इस अधिनियम की धारा-2 (1) (डी) के अनुबंध (2) के मुताबिक, उपभोक्ता का आशय उस व्यक्ति से है, जो किन्हीं सेवाओं को शुल्क की एवज में प्राप्त करता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 के अपने एक फैसले में कहा कि इस परिभाषा में वे व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं, जो इन सेवाओं से लाभान्वित हो रहे हों।
उपभोक्ताओं को मालूम होना चाहिए कि वे जो खा रहे हैं, उसमें क्या है, उसकी गुणवत्ता क्या है, उसकी मात्रा और शुद्धता कितनी है? उत्पादकों को भी चाहिए कि वे अपने उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी विस्तृत जानकारी दें।
- शरद पवार, केंद्रीय कृषि मंत्री
यह कानून उपभोक्ताओं के लिए एक राहत बनकर आया है। 1986 से पहले उपभोक्ताओं को दीवानी अदालतों के चक्कर लगाने पडते थे। इसमें समय के साथ-साथ धन भी ज्यादा खर्च होता था। इसके अलावा उपभोक्ताओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पडता था। इस समस्या से निपटने और उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए संसद ने जिला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर विवाद पारितोष अभिकरणों की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया। यह जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है। जम्मू-कश्मीर ने इस संबंध में अपना अलग कानून बना रखा है। इस अधिनियम के तहत तीन स्तरों पर अभिकरणों की स्थापना की गई है, जिला स्तर पर जिला मंच, राज्य स्तर पर राज्य आयोग और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग। अब उपभोक्ताओं को वकील नियुक्त करने की जरूरत नहीं है। उन्हें अदालत की फीस भी नहीं देनी पड़ती। इन अभिकरणों द्वारा उपभोक्ता का परिवाद निपटाने की सेवा पूरी तरह निरूशुल्क है। इन तीनों अभिकरणों को दो प्रकार के अधिकार हासिल हैं। पहला धन संबंधी अधिकार और दूसरा क्षेत्रीय अधिकार। जिला मंच में 20 लाख रुपये तक के वाद लाए जा सकते हैं। राज्य आयोग में 20 लाख से एक करोड रुपये तक के मामलों का निपटारा किया जा सकता है, जबकि राष्ट्रीय आयोग में एक करोड रुपये से ज्यादा के मामलों की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यह धन संबंधी अधिकार है। जिस जिले में विरोधी पक्ष अपना कारोबार चलाता है या उसका ब्रांच ऑफिस है या वहां कार्य कर रहा है तो वहां के मंच में शिकायती पत्र दिया जा सकता है। इसे क्षेत्रीय अधिकार कहते हैं। उपभोक्ता को वस्तु और सेवा के बारे में एक शिकायत देनी होती है, जो लिखित रूप में किसी भी अभिकरण में दी जा सकती है। मान लीजिए, जिला मंच को शिकायत दी गई। शिकायत पत्र देने के 21 दिनों के भीतर जिला मंच विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करेगा कि वह 30 दिनों में अपना पक्ष रखे। उसे 15 दिन अतिरिक्त दिए जा सकते हैं। जिला मंच वस्तु का नमूना प्रयोगशाला में भेजता है। इसकी फीस उपभोक्ता से ली जाती है। प्रयोगशाला 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट भेजेगी। अगर रिपोर्ट में वस्तु की गुणवत्ता में कमी साबित हो गई तो जिला मंच विरोधी पक्ष को आदेश देगा कि वह माल की त्रुटि दूर करे, वस्तु को बदले या कीमत वापस करे या नुकसान की भरपाई करे, अनुचित व्यापार बंद करे और शिकायतकर्ता को पर्याप्त खर्च दे आदि। अगर शिकायतकर्ता जिला मंच के फैसले से खुश नहीं है तो वह अपील के लिए निर्धारित शर्तें पूरी करके राज्य आयोग और राज्य आयोग के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है। इन तीनों ही अभिकरणों में दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। मंच या आयोग का आदेश न मानने पर दोषी को एक माह से लेकर तीन साल की कैद या 10 हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों सजाएं हो सकती हैं।
कुछ ही बरसों में इस कानून ने उपभोक्ताओं की समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण किरदार निभाया। इसके जरिये लोगों को शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने का साधन मिल गया। इसमें 1989, 1993 और 2002 में संशोधन किए गए, जिन्हें 15 मार्च, 2003 को लागू किया गया। संशोधनों में राष्ट्रीय आयोग और राज्यों के आयोगों की पीठ का सृजन, सर्किट पीठ का आयोजन, शिकायतों की प्रविष्टि, सूचनाएं जारी करना, शिकायतों के निपटान के लिए समय सीमा का निर्धारण, भूमि राजस्व के लिए बकाया राशियों के समान प्रमाणपत्र मामलों के माध्यम से निपटान अभिकरण द्वारा मुआवजे की वसूली का आदेश दिया जाना, निपटान अभिकरण द्वारा अंतरिम आदेश जारी करने का प्रावधान, जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना, जिला स्तर पर निपटान अभिकरण के संदर्भ में दंडात्मक न्याय क्षेत्र में संशोधन और नकली सामानध्निम्न स्तर की सेवाओं के समावेश को अनुचित व्यापार प्रथाओं के रूप में लेना आदि शामिल हैं। उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2002 के बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने उपभोक्ता संरक्षण विनियम-2005 तैयार किया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ताओं को अधिकार दिया है कि वे अपने हक के लिए आवाज उठाएं। इसी कानून का नतीजा है कि अब उपभोक्ता जागरूक हो रहे हैं। इस कानून से पहले उपभोक्ता बडी कंपनियों के खिलाफ बोलने से गुरेज करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। मिसाल के तौर पर एक उपभोक्ता ने चंडीगढ से कुरुक्षेत्र फोन शिफ्ट न होने पर रिलायंस इंडिया मोबाइल लिमिटेड के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और उसे इसमें कामयाबी मिली। इस लापरवाही के लिए उपभोक्ता अदालत ने रिलायंस पर 1।5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। इसी तरह एक उपभोक्ता ने रेलवे के एक कर्मचारी द्वारा उत्पीडित किए जाने पर भारतीय रेल के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में मामला दर्ज करा दिया। नतीजतन, उपभोक्ता अदालत ने रेलवे पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया। बीते जून माह में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने ओडिसा के बेलपहाड के पशु आहार विके्रता राजेश अग्रवाल पर एक लाख 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। मामले के मुताबिक, ओडिसा के बेलपहाड के पशुपालक राम नरेश यादव ने अगस्त 2004 में राजेश की दुकान से पशु आहार खरीदा था। इसे खाने के कुछ घंटे बाद उसकी एक भैंस, एक गाय और दो बछड़ियों ने दम तोड दिया। इसके अलावा बेल पहाड़ के जुल्फिकार अली भुट्टो की एक गाय की भी यह पशु आहार खाने से मौत हो गई। पीड़ितों द्वारा मामले की सूचना थाने में देने के बाद ब्रजराज नगर के पशु चिकित्सक लोचन जेना एवं बेलपहाड़ के पशु चिकित्सक प्रफुल्ल नायक ने भी पोस्टमार्टम के उपरांत इस बात की पुष्टि की कि पशुओं की मौत विषैला दाना खाने से हुई है। राम नरेश द्वारा क्षतिपूर्ति मांगने पर व्यवसायी ने कुछ भी देने से इंकार कर दिया। इस पर राम नरेश ने जिला उपभोक्ता अदालत की शरण ली और अदालत ने पशु आहार विक्रेता को दोषी करार दिया। इस फैसले के खिलाफ व्यापारी राजेश ने राज्य उपभोक्ता अदालत और बाद में 2007 में राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में अपील दायर की। राष्ट्रीय अदालत के जज जे एम मल्लिक और सुरेश चंद्रा की खंडपीठ ने राज्य उपभोक्ता अदालत के फैसले को सही मानते हुए व्यापारी को एक लाख बीस हजार रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ता समूहों को प्रोत्साहित करने का काम किया है। इस कानून से पहले जहां देश में सर्फि 60 उपभोक्ता समूह थे, वहीं अब उनकी तादाद हजारों में है। उन उपभोक्ता समूहों ने स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई है। सरकार ने उपभोक्ता समूहों को आर्थिक सहयोग मुहैया कराने के साथ-साथ अन्य कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं। टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन उपभोक्ताओं के लिए वरदान बनी है। देश भर के उपभोक्ता टोल फ्री नंबर 1800-11-14000 डायल कर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श ले सकते हैं। उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई जागो, ग्राहक जागो जैसी मुहिम से भी आम लोगों को उनके अधिकारों के बारे में पता चला है।
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने माना है कि राज्य सरकारें उपभोक्ता मंच और आयोग को सुविधा संपन्न बनाने के लिए केंद्र द्वारा जारी बजट का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। इस बजट का समुचित उपयोग होना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि उपभोक्ताओं को मालूम होना चाहिए कि वे जो खा रहे हैं, उसमें क्या है, उसकी गुणवत्ता क्या है, उसकी मात्रा और शुद्धता कितनी है? उत्पादकों को भी चाहिए कि वे अपने उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी विस्तृत जानकारी दें। बहरहाल, उपभोक्ताओं को खरीदारी करते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए। उपभोक्ताओं को विभिन्न आधारभूत पहलुओं जैसे अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी), सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग, उत्पादों पर भारतीय मानक संस्थान (आईएसआई) का निशान और समाप्ति की तारीख के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इसके बावजूद अगर उनके साथ धोखा होता है तो उसके खिलाफ शिकायत करने का अधिकार कानून ने उन्हें दिया है, जिसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
उपभोक्ताओं की परेशानियां
सेहत के लिए नुकसानदेह पदार्थ मिलाकर व्यापारियों द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट करना या कुछ ऐसे पदार्थ निकाल लेना, जिनके कम होने से पदार्थ की गुणवत्ता पर विपरीत असर पडता है, जैसे दूध से क्रीम निकाल कर बेचना।
टेलीविजन और पत्र-पत्रिकाओं में गुमराह करने वाले विज्ञापनों के जरिये वस्तुओं तथा सेवाओं का ग्राहकों की मांग को प्रभावित करना।
वस्तुओं की पैकिंग पर दी गई जानकारी से अलग सामग्री पैकेट के भीतर रखना।
बिक्री के बाद सेवाओं को अनुचित रूप से देना।
दोषयुक्त वस्तुओं की आपूर्ति करना।
कीमत में छुपे हुए तथ्य शामिल होना।
उत्पाद पर गलत या छुपी हुई दरें लिखना।
वस्तुओं के वजन और मापन में झूठे या निम्न स्तर के साधन इस्तेमाल करना।
थोक मात्रा में आपूर्ति करने पर वस्तुओं की गुणवत्ता में गिरावट आना।
अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) का गलत तौर पर निर्धारण करना।
एमआरपी से ज्यादाकीमत पर बेचना।
दवाओं आदि जैसे अनिवार्य उत्पादों की अनाधिकृत बिक्री उनकी समापन तिथि के बाद करना।
कमजोर उपभोक्ताएं सेवाएं, जिसके कारण उपभोक्ता को परेशानी हो।
बिक्री और सेवाओं की शर्तों और निबंधनों का पालन न करना।
उत्पाद के बारे में झूठी या अधूरी जानकारी देना।
गारंटी या वारंटी आदि को पूरा न करना।
उपभोक्ताओं के अधिकार
जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक सामान और सेवाओं के विपणन के खिला़फ सुरक्षा का अधिकार।
सामान अथवा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, स्तर और मूल्य, जैसा भी मामला हो, के बारे में जानकारी का अधिकार, ताकि उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके।
जहां तक संभव हो उचित मूल्यों पर विभिन्न प्रकार के सामान तथा सेवाओं तक पहुंच का आश्वासन।
उपभोक्ताओं के हितों पर विचार करने के लिए बनाए गए विभिन्न मंचों पर प्रतिनिधित्व का अधिकार।
अनुचित व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध निपटान का अधिकार।
सूचना संपन्न उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार।
अपने अधिकार के लिए आवाज उठाने का अधिकार।
माप-तोल के नियम
हर बाट पर निरीक्षक की मुहर होनी चाहिए।
एक साल की अवधि में मुहर का सत्यापन जरूरी है।
पत्थर, धातुओं आदि के टुकडों का बाट के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता।
फेरी वालों के अलावा किसी अन्य को तराजू हाथ में पकड कर तोलने की अनुमति नहीं है।
तराजू एक हुक या छड की सहायता से लटका होना चाहिए।
लकडी और गोल डंडी की तराजू का इस्तेमाल दंडनीय है।
कपडे मापने के मीटर के दोनों सिरों पर मुहर होनी चाहिए।
तेल एवं दूध आदि के मापों के नीचे तल्ला लटका हुआ नहीं होना चाहिए।
मिठाई, गिरीदार वस्तुओं एवं मसालों आदि की तुलाई में डिब्बे का वजन शामिल नहीं किया जा सकता।
पैकिंग वस्तुओं पर निर्माता का नाम, पता, वस्तु की शुद्ध तोल एवं कीमत कर सहित अंकित हो। साथ ही पैकिंग का साल और महीना लिखा होना चाहिए।
पैकिंग वस्तुओं पर मूल्य का स्टीकर नहीं होना चाहिए।
kahan kare v kaise kare shikayat
भ्रष्टाचार पर कीजिए वार
भ्रष्टाचार से आम आदमी परेशान हैं उसे समझ में नहीं आ रहा कि करें तो क्या करें! लेकिन बिल्कुल ऐसा भी नहीं है। भ्रष्टाचार के खिलाफ छोटी-छोटी पहल व आवाज उसके खिलाफ लड़ाई का बड़ा मैदान तैयार करने में मददगार है। इसीलिए पंचायतनामा ने अपने पाठकों के लिए भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए जिम्मेवार महत्वपूर्ण संस्थाओं के बारे में विस्तृत जानकारी व उसके पास शिकायत करने के तरीकों का संकलन यहां प्रस्तुत किया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले एनजीओ की भी जानकारी दी गयी है। राज्यपाल, मुख्यमंत्री से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के भी फोन नंबर यहां दिये गये हैं। आप संबंधित संस्थाओं व अधिकारियों के पास शिकायत करें। ये आपके लिए हैं. आप फोन करें, फैक्स करें, पत्र लिखें। यकीन मानिए आपकी बार-बार की शिकायतें रंग लायेंगी व भ्रष्टाचार के कैंसर के यहीं से खत्म होने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी।
केंद्रीय सतर्कता आयोग से करें शिकायत
केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 में बना। इसके माध्यम से लोक सेवकों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों वाली शिकायतों की जांच केंद्रीय सतर्कता आयोग को करने अथवा जांच करवाने का अधिकार प्राप्त है। आयोग संबंधित संगठनों के मुख्य सतर्कता अधिकारी अथवा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो(सीबीआइ) अथवा भारत सरकार के किसी भी अन्य भ्रष्टाचार निरोधी जांच एजेंसी के माध्यम से जांच करवा सकता है।
आयोग के अधिकार क्षेत्र
1. केंद्रीय सतर्कता आयोग की अधिकार क्षेत्र में आने वाले संगठनों की निम्नलिखित श्रेणियों के अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत की जा सकती है
केंद्रीय सरकारी मंत्रलय विभाग
केंद्रीय सरकार के सार्वजनिक उपक्रम
राष्ट्रीयकृत बैंक, बीमा कंपनियां
संसद के अधिनियम के माध्यम से स्थापित अथवा भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन स्वायत्त संगठन जैसे एम्स, पत्तन न्यास व दिल्ली विकास प्राधिकरण आदि
दिल्ली, चंडीगढ़, दमन एवं दीव, पुडुचेरी आदि सहित केंद्र शासित प्रदेश।
भारत सरकार के स्वामित्व अथवा नियंत्रणाधीन सोसाइटी व स्थानीय प्राधिकरण।
2. निजी व्यक्तियों व राज्य सरकारों के संगठनों पर भ्रष्टाचार के मामले में आयोग का कोई नियंत्रण या अधिकार नहीं है।
3. अधिकारियों की केवल कुछ विशेष श्रेणियों पर आयोग का सीधा अधिकार है
निरूशुल्क नंबर व हेल्पलाइन की सुविधा है उपलब्ध
शुल्क रहित नंबर: 1800-11-0180
दिल्ली से बाहर के निवासी इस नंबर पर सिर्फ बीएसएनएल फोन या मोबाइल से शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
हेल्पलाइन नंबर है: 011-24651000
भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों के सुस्पष्ट तथ्य देते हुए सीधे केंद्रीय सतर्कता आयेाग को संबोधित पत्रध्ईमेल द्वारा शिकायते की जा सकती है. केंद्रीय सतर्कता आयोग की वेबसाइट पर भी शिकायतें सीधे दर्ज की जा सकती है.
वेबसाइट का पता है www-cvc-nic-in
मुखबिर के संरक्षण का भी है प्रबंध
भ्रष्टाचार का मामला प्रकट करते समय यदि कोई शिकायतकर्ता अपनी पहचान गुप्त रखना चाहता है तो उसे लोकहित प्रकटीकरण और मुखबिर संरक्षण संकल्प (पर्दाफाश प्रावधान के नाम से प्रसिद्ध) के अंतर्गत शिकायत देनी चाहिए. आयोग को न केवल शिकायतकर्ता की पहचान गुप्त रखने का निर्देश है, बल्कि उसे शिकायतकर्ता को किसी शारीरिक धमकी, उत्पीड़न व अत्याचार के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने का भी निर्देश है।
लोकहित प्रकटीकरण और मुखबिर संरक्षण संकल्प के अंतर्गत शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया
लोकहित प्रकटीकरण और मुखबिर संरक्षण संकल्प के अंतर्गत शिकायतें केवल डाक द्वारा दी जा सकती हैं. लिफाफे पर मोटे शब्दों में लोकहित प्रकटीकरण और मुखबिर संरक्षण या पर्दाफाश लिखा होना चाहिए. शिकायतकर्ता को पत्र में अपना नाम नहीं देना चाहिए. व्यक्तिगत विवरण पृथक रूप से दिया जाना चाहिए अथवा पत्र के सबसे ऊपर अथवा सबसे नीचे दिया जाना चाहिए, ताकि इन्हें आसानी से छिपाया जा सके।
यदि किसी व्यक्ति का इस कारण उत्पीड़न किया जाता है कि उसने पर्दाफाश प्रावधानों के अंतर्गत शिकायत दर्ज की है, तो वह मामले के समाधान प्राप्त करने के लिए आयोग के समक्ष आवेदन दे सकता है. तब आयोग शिकायतकर्ता की सुरक्षा के लिए उचित रूप से हस्तक्षेप करेगा।
शिकायत की स्थिति जानिए रू वेबसाइट ूूू.बअब.दपब.पद पर प्रदर्शित शिकायत स्थिति पर क्लिक करके शिकायतकर्ता, जांच किए जाने तथा रिपोर्ट दिए जाने के लिए संबधित प्राधिकारियों को भेजी गयी शिकायतों पर की गयी कार्रवाई की स्थिति देखने के लिए आयोग द्वारा दी गयी शिकायत संख्या का प्रयोग कर सकते हैं।
आयोग में शिकायतों पर की जाने वाली कार्रवाई
आयोग द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो अथवा संबंधित संगठन के मुख्य सतर्कता अधिकारी के माध्यम से केवल उन शिकायतों का अन्वेषण करवाया जायेगा, जो आयोग के अधिकारिता में आने वाले कर्मचारी अथवा संगठन के विरुद्ध है व जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. आयोग अपने अधिकारी से भी जांच करवा सकता है।
आयोग द्वारा जांच के लिए भेजी गयी शिकायतों पर मुख्य सतर्कता अधिकारी को तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है. जांच रिपोर्ट के आधार पर आयोग विवेक का स्वतंत्र प्रयोग करने के बाद सलाह देता है। संबंधित अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई करने में लगभग छह महीने का समय लगता है।
आयोग द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो-मुख्य सतर्कता अधिकारी को एक शिकायत की जांच करने व रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने का निर्देश दिए जाने पर शिकायतकर्ता को एक शिकायत संख्या दी जाएगी.
शिकायतकर्ता आयोग की वेबसाइट www-cvc-nic-inद पर प्रदर्शित शिकायत की स्थिति पर क्लिक करके शिकायत पर की गयी कार्रवाई की स्थिति देखने के लिए शिकायत संख्या का प्रयोग कर सकता है।
शिकायत में वास्तविक विवरण, सत्यापनीय तथ्य व संबद्ध मामले होने चाहिए। ये अस्पष्ट अथवा अतिश्योक्तिपूर्ण सामान्य आरोपों वाले नहीं होनी चाहिए।
शिकायत आयोग को सीधे संबोधित होनी चाहिए. आयोग को शिकायतें प्रतिलिपि के रूप में नहीं भेजी जानी चाहिए.
आयोग अनामध्छद्मनाम शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करता है। इसके बावजूद संगठन ऐसी शिकायतें प्राप्त होने पर इनका अन्वेषण करने के लिए आयोग से अनुमति ले।
उपयरुक्त मानदंडों को पूरा नहीं करने वाली शिकायतों को या तो फाइल कर दिया जायेगा अथवा आवश्यक कार्रवाई के लिए संबंधित मुख्य सतर्कता अधिकारी को भेज दिया जाएगा और जांच करवायी जाएगी।
सीबीआइ को करें शिकायत
सीबीआइ भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच करने वाली एक महत्वपूर्ण एजेंसी है। सीबीआइ बिना नाम के या छद्म नाम पर शिकायत करने पर मामले की जांच नहीं करती है। अतरू जब आपको सीबीआइ से शिकायत करने की जरूरत पड़े तो आप अपना वास्तविक व सही परिचय दें। सीबीआइ परंपरागत अपराधों जैसे हत्या, चोरी, डकैती जैसे मामलों की शिकायत की सुनवायी नहीं करता है। हां, विशेष परिस्थितियों में सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय व राज्य सरकारों के आदेश पर ऐसे मामलों की जांच करता है।
सीबीआइ को इस नंबर पर करें शिकायत:
फोन नं. रू 011-24362755ध्24361273.
इ-मेल पता रूपदवितउंजपवद/बइप.हवअ.पद
गलत ढंग से मानव के विशेषकर महिलाओं व बच्चों के अवैध व्यापार की शिकायत सीबीआइ की 24 घंटे सातों दिन उपलब्ध रहने वाला हेल्पलाइन नंबर रू 011-24368638 पर कर सकते हैं. झारखंड में यह स्थिति सामान्य बात है.
साइबर अपराध के लिए रू साइबर अपराध से जुड़ी शिकायतों के लिए इ-मेल पता है रू ेचमवनेकमस/बइप.हवअ.पद आर्थिक अपराध के लिए रू बैंकिंग व आर्थिक सेक्टर, बीमा क्षेत्र, स्टॉक मार्केट, कस्टम एवं सेंट्रल एक्साइज, कॉरपोरेट सेक्टर, इ-कॉमर्स क्रेडिट कार्ड के दुरुपयोग का, एटीएम कार्ड के दुरुपयोग व यात्र संबंधी कागजात के दुरुपयोग की शिकायत भी की जा सकती है। नशीले पदार्थ, वन्य पशु, सांस्कृतिक धरोहरों, मानव तस्करी, मुद्रा की तस्करी, बौद्धिक संपदा अधिकार को क्षति पहुंचाने, तकनीक के माध्यम से होने वाले अपराध व अन्य अपराधों की शिकायत भी सीबीआइ से की जा सकती है। इस तरह की शिकायत इस इ-मेल पते पर की जा सकती है ।
आजकल आमलोग सरकारी बैंकों में अनियमितता व गड़बड़ी के भुक्तभोगी बनते हैं. इस तरह की खबरें भी आती हैं कि एकाउंट धारी के एकाउंट से फर्जी तरीके से कोई अन्य व्यक्ति पैसों की निकासी कर लेता है. ऐसी कई अन्य शिकायतें भी आती हैं। ऐसे मामलों की भी आप सीबीआइ को शिकायत कर सकते हैं. बैंकों में हुई गड़बड़ी की शिकायत के लिए एक फॉरमेट भी सीबीआइ की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
फोन नं. रू 0612-2235599
सीबीआइ, एंटी क्राइम ब्रांच, रांची, 9470590429
क्या है ट्रांसपेरेंसी इंटनेशनल
ट्रांसपेरेंसी इंटनेशनल भ्रष्टाचार निरोधी अंतरराष्ट्रीय संस्था है. इसके रांची स्थित केंद्र पर संपर्क कर आप भ्रष्टाचार की शिकायत करने के साथ ही आवश्यक सूचना भी प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावा यह केंद्र कानूनी सलाह देने का भी काम करता है। ट्रांसपेरेंसी इंटनेशनल, रांची के समन्वयक अविनाश कुमार बताते हैं कि उनके पास जो शिकायतें आती हैं, वे उसकी जानकारी संबंधित अधिकारी व अन्य जिम्मेवार लोगों को देते हैं व उसके निबटारे के लिए कहते हैं। अविनाश कुमार के अनुसार, भ्रष्टाचार रोकने के लिए पंचायत राज निकाय व गांव के लोग भी सशक्त माध्मय बन सकते हैं, बशर्ते कि वे उन हथियारों का उपयोग करना जानें जो उन्हें एक नागरिक के रूप में कानून के तहत मिले हैं। आप अविनाश कुमार से फोन कर सलाह ले सकते हैं।
दिल्ली का पता है रू क्वार्टर नंबर - 4, लाजपत भवन, लाजपत नगर - 4, नयी दिल्ली - 110024.
फोन नंबर रू 011-26460826ध्40634797, फैक्स नंबर रू 011-26424552
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल, रांची
हेल्पलाइन रू 9334402323, पता रू अविनाश कुमार, यामहा शोरूम के सामने, कांके रोड, रांची. सुबह 9.30 बजे से शाम 6.00 तक फोन करें.
इंडिया एगेंस्ट करप्शन
अन्ना हजारे के पूर्व सहयोगियों(अरविंद केजरीवाल आदि) की संस्था इंडिया एगेंस्ट करप्शन भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए मुखर है। साल 2011 व 2012 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के पीछे इस संस्था की बड़ी भूमिका थी। आप भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतें इस संस्था से भी कर सकते हैं। आप इन्हें पत्र लिखिए, मेल व फैक्स कीजिए। फोन पर भी अपनी परेशानी बताइए।
पता है रू इंडिया एगेंस्ट करप्शन, ए-119, फस्र्ट फ्लोर, कौशांबी, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश - 201010.अरविंद केजरीवाल रू 9868069953, फोन नंबर रू 0120-4559701ध्4559237, टेलीफैक्स रू 0120-2771017, हेल्पलाइन नंबर रू 9718500606.
राजभवन
राज्यपाल, डॉ सैयद अहमद
0651-2283469 (का.), 0651-2283465 (का.), 0651-2201101 (फै.)
राज्यपाल के प्रधान सचिव, डॉ एके पांडेय
9431107791, 0651-2283468 (का.)
0651-2201101 (फैक्स)
सदाशिव राव, राज्यपाल के ओएसडी (न्यायिक) 0651-2283465, 9431129704
क्रांति कुमार, राज्यपाल के एपीआरओ-
0651-2283465, 09431578661
मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री, अर्जुन मुंडा
0651-2400233 (का.)
0651- 2280996 (आ.), 0651-2440061(फै.)
डॉ डीके तिवारी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव रू 9431103154, 0651-2281400(का.)
0651-2281300(फै.)
मुख्यमंत्री के वरीय आप्त सचिव
संजय बसु: 9431173013
अरुण कु सिंह रू 9931548318
श्रीमती शालिनी वर्मा, उपनिदेशक, जनसंपर्क
0651-2280366, 9431432970
उपमुख्यमंत्री
उपमुख्यमंत्री, सुदेश कु महतो
0651-2400237 (का.), 0651-2282200 (आ.), 09431107395 (मो.)
हिमांशु कुमार, निजी सचिव रू 9431104757
उपमुख्यमंत्री, हेमंत सोरेन
0651-2401957 (का.), 0651-2281118 (आ.), 0651-2401959 (फै.)
मो रू 9431100079
विस अध्यक्ष
विधानसभा अध्यक्ष, चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह रू 9431170001, 0651-2440075 (का.)
0651-2307715 (फैक्स)
नेता प्रतिपक्ष
राजेंद्र प्रसाद सिंह , 9431164690
9811322971, 0651-2440100 (का.)
0651-2283541 (आ.)
आपका सीएम डॉट कॉम
शिकायत के लिए नंबर: 0651-3059999
झारखंड मोबाइल रेडियो: 08800097458
मंत्री
चंद्र प्रकाश चैधरी: 9431134157
0651-2490584 (का),
0651-2360174 (आ)
हाजी हुसैन अंसारी: 9470590765
0651-2400152 (का)
0651-2480394 (आ)
मथुरा प्रसाद महतो: 9431507453
8969171353
0651-2400219 (का)
0651-2480653 (आ)
चंपई सोरेन रू 9431374484
0651-2400228 (का)
0651-2400830 (फै)
गोपाल कृष्ण पातर (राजा पीटर)
9470367047, 0651-2407003 (का)
0651-2360253 (आ)
0651-2405605 (फै)
श्रीमती विमला प्रधान: 9431159411
0651-2407003 (का)
0651-2360253 (आ)
0651-2405605 (फै)
सत्यानंद झा (बाटुल): 9430168229
0651-2490518 (का)
0651-2491392 (फै)
पूर्व मुख्यमंत्री
बाबूलाल मरांडी: 9431175555, 9868180438, 0651-2246017 (का)
0651-2246017 (फै)
शिबू सोरेन रू 0651-2361351 (का)
0651-2361352 (आ)
0651-2361353 (फै)
मुख्य सचिव
सुशील कु चैधरी, मुख्य सचिव
9431115771, 0651-2400240 (का.)
0651-2400255 (फैक्स)
संजय कुमार मेहता, मुख्य सचिव के आप्त सचिव रू 9431647088
मंत्रिमंडल सचिवालय
प्रधान सचिव, 0651-2400221(का.)
0651-2400253 (फैक्स)
मंत्रिमंडल निगरानी
जेबी तुबिद, निगरानी आयुक्त: 9431171117
0651-2400033 (का)
0651-2400230 (फै)
नीरज सिन्हा, निगरानी एडीजी: 9939097626
गृह विभाग
सचिव - 0651-2400220 (का)
0651-2400230 (फैक्स)
09431171117 (मो.)
कारा महानिरीक्षक
0651-2400790 (का.)
0651-2400745 (फैक्स.)
09199109009 (मो.)
विशेष सचिव
0651-2400700
09431170170 (मो)
डीजीपी
पुलिस महानिदेशक, गौरीशंकर रथ
0651-2400737 (का.)
0651-2400738 (फैक्स)
09431602301 (मो.)
09431602302 (मो.)
एडीजी (मुख्यालय)
0651-2400895 (का.)
9431707006
एडीजी (विधि-व्यवस्था)
0651-2400721 (का.)
0651-2400998 (फै)
09431104217 (मो.)
अपराध अनुसंधान
अपर पुलिस महानिदेशक
0651-2490546, 2490377 (का)
9771432100
पुलिस महानिरीक्षक
0651-2490046 (का), 0651-2490295 (फै)
मानवाधिकार आयोग
अध्यक्ष रू 0651-2401000 (का)
0651-2241111 (आ), 9431108004
सदस्य रू 0651-2401138
9279888379
सचिव रू 0651-2401181, 9431396100
राज्य निर्वाचन आयोग
राज्य निर्वाचन आयुक्त, 0651-2284012 (का), 0651-2284048 (फै)
9431107389
सचिव, 0651-2284008, मो-9431188295
राज्य अल्पसंख्यक आयोग
डॉ गुलफाम मुजिबी, अध्यक्ष
0651-2400946, मो-9431362950
मो नईमुद्दीन खां, सचिव, मो-9431357274
वाणिज्य कर न्यायाधिकरण
अध्यक्ष, 0651-2282705 (का)
0651-2283445 (फै)
झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण
0651-2444144
उपभोक्ता आयोग
0651-2480171, 9431102665
राज्य विधि आयोग
अध्यक्ष: 0651-2284937, सदस्य सचिव - 0651-2284939, मो-9431707980
पिछड़ा वर्ग आयोग
0651-2441450, 9431535479
सदस्य सचिव, 0651-2441790
9973802663
राज्य विधिक सेवा प्राधिकार
कार्यपालक अध्यक्ष, 0651-2481352
सदस्य सचिव, 0651-2482392
8986601912
राज्य महिला आयोग
0651-2401849, हेमलता एस मोहन, अध्यक्ष रू
9431127552, वासवी किड़ो, सदस्य रू
0651-2401912, 9431103047
अनुसूचित जनजाति आयोग
एसआर तिरिया, अनुसंधान पदाधिकारी
0651-2341677 (का), 0651-2340368 (फै)
लोकायुक्त, झारखंड
न्यायमूर्ति अमरेश्वर सहाय, लोकायुक्त
0651-2282899 (का), 0651-2282444 (फै)
मो - 9431100495
राजेंद्र कु जुमनानी, सचिव
0651-2281160 (का), मो - 9431100347
पंचायती राज विभाग
गणोश प्रसाद, निदेशक, 9431190665
0651-2401727 (का), 0651-2401728 (फै)
ग्रामीण विकास विभाग
प्रधान सचिव, 0651-2400244 (का)
0651-2400245 (फै)
कृषि विभाग
अरुण कुमार सिंह, सचिव, 9431158012
0651-2490578 (का)
केके सोन, कृषि निदेशक , 9431708883
मनरेगा की शिकायत
नरेगा हेल्पलाइन नंबर रू 18003456527
जवाहर मेहता, समन्वयक, झारखंन नरेगा
वाच: 9430126909
झारखंड एंगेस्ट करप्शन
हेल्पलाइन नंबर: 9470110113 ध्9470103333
दुर्गा उरांव: 8969602483
पंकज कुमार यादव: 7488518639
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