Saturday, 26 November 2016

surgical strike on black money

मोदी के कदम से चारो ओर सिर्फ एक हजार या पांच सौ के नोट पर प्रतिबन्द की चर्चा चल रही है/  मोदी जी का ये कदम हमें भविष्य में बहुत ही लाभदेने वाला होगा? नोटबंदी की चर्चा हर जगह चल रही है, नोटबंदी से पूरा देश कतार में लगा हुआ फिर भी खुश है लेकिन नेताओ , अधिकारियो की नींद उड़ी हुई है. आज नोट को प्रतिबंदित किये हुए अट्ठारह दिन हो चुके है. धीरे धीरे लोगो को नए नोट उपलब्ध कराये जा रहे है. लेकिन अभी पांच सौ का नोट काम संख्या में आने से अभी भी लेनदेन में लोगो को परेशानियां  

Friday, 28 June 2013

परिणय बाजार में हर कीमत के हैं दूल्हें

दहेज एक बहुत बड़ा सामाजिक मुद़्दा जिसकी रोकथाम के लिए तमाम कानून भी बनाए गए हैं। दहेज की मांग करने वालों को जेल की हवा खाने का प्रावधान है। भारत में इसको खत्म करने के लिए कई सामाजिक संस्थाओं ने भी वीणा उठाया लेकिन इसको जड़ से खत्म न किया जा सका। दहेज के कारण कई विवाहितों को अपनी जान से हाथ धोने पड़े हैं तो कईंयों ने दहेज के कारण किए गए उत्पीडऩ से तंग आकर आत्महत्या कर ली तो कईयों को ससुरालियों ने ही मौत के घाट उतार दिया। माना जाता है कि 'दुल्हन ही दहेज हैÓ लेकिन ये सिर्फ दूसरों को कहने व सुनने के लिए हैं, इसको आत्मीयता में कोई नहीं उतारता। समाज ने हो रहे घोटालों का जमकर विरोध किया। जब कोई नेता भ्रष्टाचार में संलिप्त पाया जाता है तो खूब खरीखोटी सुनाकर अपना मन हल्का कर लेते हैं, काले धन व भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जमकर छींटाकशी कर देते हैं लेकिन जब बात बेटे के विवाह की आती है तो मुंह में पानी आ जाता है और उसी कतार में सबसे आगे खड़े नजर आते हैं। कोशिश होती है कि जितना पैसा बेटे की पढ़ाई में खर्च किया है सब को मय सूत के बसूलने की कोशिश होती है। आज भी समाज का एक बड़ा तबका दहेत लेने व देने में विश्वास रखता है। घर में बेटी के पैदा होते ही पिता के कंधे झुक जाते हैं। न चाहते हुए भी सोचता है काश! लड़का हुआ होता तो कम से कम दहेज तो न देना होता। लेकिन क्या करें उसी समाज के डर से उसे बेटी को पढ़ाना लिखाना भी पड़ता है। लेकिन साथ- साथ एक और व्यथा मन का सताती है कि अगर लड़की ज्यादा पढ़ जाएगी तो पढ़ा लिखा ही दामाद ढ़ूढऩा पडेगा। इसलिए आस-पडौसी भी मुफ्त में राय दे देते हैं कि 'क्यों पढ़ाई में इतना खर्च कर रहे हो जितना ज्यादा पढ़ेगी उतना ही ज्यादा दहेज देना पड़ेगाÓ। आखिर पड़ौसियों की बात में भी सच्चाई है लड़की जितनी ज्यादा पढ़ी लिखी होगी उसके लिए वर तो उसके योग्य ही ढ़ूढऩा पड़ेगा। क्या करें मां बाप भी मजबूर होते हैं। बेटी की आकांक्षाओं को देखते हैं तो पढ़ाने पर मजबूर हो जाते हैं और जब शादी की सोचते हैं तो घबरा जाते हैं। माना जाता है कि आज के दौर की लड़कियां मां-बाप पर बौझ नहीं होती , कहीं तक ये बात ठीक है लेकिन जब बात शादी की आती है तो जितना बाप का कद होता है उससे कहीं ऊंचे घराने में अपनी बिटिया की शादी की सोचता है। खैर छोडि़ए अब बात करते हैं बेटे के पिता की। भाई उसके तो दोनों हाथों में लड्डू होते हैं। बेटे के पैदा होने पर घर में खुशियों के अंबार लग जाते हैं। जेब चाहे खाली हो फिर भी हजारों के उपहार बंट जाते हैं। क्यों न बंटे भाई बीस-पच्चीस सालों बाद मय सूत के जो वसूल हो जाएगे। जब से बेटा पैदा होता है बाप का सीना चौड़ा हो जाता है। अगर बेटा पढऩे में अव्वल है तो नौकरी लगना तय है और अगर नौकरी लग गई तो फिर क्या है उसके बारे न्यारे हो जाते हैं। सुनने में आया है कि लड़केवालों ने दहेज लेना बंद कर दिया है। अरे भाई क्यों मजाक करते हो पहले घंूस खोरी खुलेआम होती थी लेकिन थोड़ी सख्ती के बाद से टेबल के नीचे से होने लगी है। आजकल परिणय सूत्र के बाजार में हर कीमत के दूल्हे हैं। अगर सरकारी नौकरी वाला है तो दस से चालीस लाख सीधे खाते में ट्रांसफर हो जाती है और अगर सरकारी नौकरी व अच्छा खासा खानदान हुआ तो फिर कहने ही क्या! फिर तो आप अंदाजा लगा सकते हैं। प्राइवेट नौकरी वालों को भी अच्छी कीमत मिल जाती है।  आखिर इस पढ़े लिखे समाज में बेटियों के साथ ये बेरूखी क्यों। क्यों पैदा होने के बाद से ही लड़की को बोझ मान लिया जाता है। पढ़ाने लिखाने के बाद भी उसे सीधी गाय की तरह एक खूंटे से क्यों बांध दिया जाता है। क्यों आज भी बेटियों के जन्म के बाद भी पिताओं के माथे पर ङ्क्षचता की लकीरे आ जाती हंै। ये सच है न समाज कल बदला था और न आज बदला है। महिलाओं के साथ ज्यादतीय होती रहीं हैं और भविष्य में भी होती रहेगी, लेकिन इनको जड़ से खत्म किया जा सकता है। अगर सभी महिलाएं व उनके पिता ये ठान लें कि दहेज मांगने वालों के यहां अपनी बेटी की शादी नहीं करेंगे तो दहेज का अस्तित्व खुद व खुद समाप्त हो जाएगा।     गायत्री पाराशर  

अपदा का ये कैसा मंजर

प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का नतीजा सबके सामने हैं। लगातार हो रही पेड़ों की कटाई व पहाड़ों के कटाव से ये गंभीर स्थिति पैदा हुई। कई दिनों तक लगातार बारिश और नदियों में जल-स्तर क्रमश: बढ़ते जाने के फलस्वरूप जो बाढ़ आती है उसका पहले से अंदाजा हो जाता है। लेकिन अचानक अतिवृष्टि, बादल फटने और भूस्खलन के कारण उत्तराखंड में आई आपदा बहुत कुछ अप्रत्याशित कही जाएगी। मुसीबत के इस सैलाब ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली। मरने वालों की सही तादाद बता पाना अब भी मुश्किल है, क्योंकि बहुत-से लोग लापता हैं। संकट में घिरे हजारों लोग बचाए भी गए हैं और इसका श्रेय खासकर सेना, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, सीमा सुरक्षा बल और सीमा सड़क संगठन के जवानों और कर्मियों को जाता है। लेकिन एक हफ्ते बाद भी हजारों लोग जगह-जगह फंसे हुए हैं। उन तक न खाना पहुंच पा रहा है न पानी और न ही उनकी स्थिति के बारे में उनके परिजनों को पता चल पा रहा है। उन्हें निकालने में मौसम से लेकर सड़कों के टूट जाने या मलबे से पट जाने तक अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। ये मुश्किलें तो अपनी जगह हैं ही, उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की कोई सक्रिय भूूमिका नहीं दिखी है। पर यह कोई हैरत की बात नहीं है। छह साल पहले राज्य में इसका गठन तो हो गया, पर दो महीने पहले आई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक स्थापना के समय से इसकी एक भी बैठक नहीं बुलाई गई। इन छह सालों में अधिकांश समय भाजपा की सरकार थी और सवा साल से कांग्रेस की है। एहतियाती इंतजाम में कोताही की कसर आपदा के समय की सुस्ती ने पूरी कर दी। केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने उत्तरकाशी, केदारनाथ और बदरीनाथ का हवाई मुआयना करने के बाद स्वीकार किया कि बचाव और राहत के काम में समन्वय की कमी रही है। उन्होंने इसके लिए राज्य सरकार की खिंचाई करने में भी संकोच नहीं किया, अलबत्ता वहां कांग्रेस की ही सरकार है। शिंदे ने यह सलाह भी दी कि राज्य के मुख्यमंत्री को छोड़ कर आपदा-पीडि़त क्षेत्र का वीआइपी दौरा या हवाई मुआयना न हो, क्योंकि इससे अधिकारियों को सुरक्षा संबंधी चिंता और अन्य प्रोटोकॉल के पालन में लगना पड़ता है, जिससे आपातकालीन काम प्रभावित होता है। यह ठीक सुझाव है और इसे नियम में बदला जाना चाहिए। लेकिन हमारे देश में आपदा के समय भी राजनीति का खेल चलता रहता है। गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के चुनाव अभियान संयोजक नरेंद्र मोदी के हैलीकॉफ्टर को उतरने से ग्रहमंत्री ने मना कर दिया लेकिन उसी दौरान राहुल के दौरे को हरी झंडी दिखा दी गई। हो सकता है कुछ दिन और बीतने पर इस आपदा को लेकर सियासी आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो, जिसकी एक खास वजह यह होगी कि अगले आम चुनाव में अब एक साल से भी कम समय रह गया है। दूसरी ओर, यह बहस भी तेज होगी कि यह आपदा कितनी कुदरती है और कितनी मानव-निर्मित। इसमें दो राय नहीं कि अति-वृष्टि और बादल फटना प्राकृतिक घटना है। पर उत्तराखंड में आई आपदा के कुछ और भी पहलू हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई, नदियों के किनारे तक इमारतों के बेतहाशा निर्माण और ढेर सारी बांध परियोजनाओं के जरिए नदियों के स्वाभाविक बहाव में बाधा से हिमालयी क्षेत्र में बाढ़ का भी खतरा बढ़ा है और भूस्खलन का भी। पर्यावरण संबंधी सवाल जब भी उठते हैं उन्हें विकास में बाधा मान दरकिनार कर दिया जाता है। मगर ऐसा विकास किस काम का, जिसे कुदरत एक झटके में बहा ले जाए। रुद्रप्रयाग, भागीरथी और चमोली में अलकनंदा और भागीरथी के किनारे बनाई गई सैकड़ों इमारतें बह गर्इं और फिर उनके मलबे ने बाढ़ को और भयानक बनाया। इस तरह के खौफनाक मंजर को रोकने के लिए अभी से प्रयत्नशील होकर इसकी रोकथाम के उपाय खोजे जा सकते हैं।              गायत्री पाराशर

Sunday, 3 February 2013

संकट मोचन बालाजी भगवान के मंदिर की स्थापना

स्व० श्री प० रामचरन दीक्षित जन कल्याण सेवा संस्थान ने कराया मंदिर का निर्माण





























मारहरा। स्व. श्री प० रामचरन दीक्षित जन कल्याण सेवा संस्थान सिकंदरा आगरा लगातार दो वर्षों से गरीब असहाय एवं धर्मार्थ कार्यों में अग्रणी रही है। संस्था की अध्यक्ष गायत्री पाराशर ने बताया कि अभी हाल ही में संस्था ने गांव पिदौरा जिला एटा में श्री संकट मोचन बालाजी भगवान के मंदिर का निर्माण कार्य कराया है। 
जिसकी वृन्दावन व मथुरा के विद्वान पंडितों के द्वारा मंत्रों व हवन द्वारा मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई।जिसमें भक्तगणों व श्रद्धालु महिलाओं ने  बढ़-चढ़कर भाग लिया तथा ढोल नगाढ़ों व बैंड बाजों के साथ भगवान श्री संकट मोचन बालाजी भगवान व शिव परिवार दोनों की झाकियां निकालकर आसपास के मंदिरों में भगवान की पूजा-अर्चना की गई और विधिवत तरीके से भगवान को उनके  मंदिर में स्थापित किया गया। संध्या के समय श्रद्धालुओं ने श्री सुंदर कांड का आयोजन किया गया। तत्पश्चात भगवान को भोग प्रसाद वितरित किया गया।  कार्यक्रम में संस्था के सदस्यों व अन्य पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया जिसमें  मुख्य रूप से श्री सतीश चन्द्र दीक्षित , हर्षवर्धन उपाध्याय हाथरस, मिंकू   एटा, संजीव कुमार दुबे एटा, सतीश पाराशर कोशी,  सर्र्वेन्द्र उपाध्याय आगरा, दिनेश कुमार पाराशर फिरोजाबाद, सुनील कुमार पचपेड़ा, पिंटू एटा, चन्द्रशेखर एटा, सुरेश चन्द्र पिदौरा, चमन प्रकाश पिदौरा, नेकसे पिदौरा, रजनी राजपूत, मुन्नालाल चक्रवर्ती आदि लोगों ने विशेष रूप से सहयोग किया। कलश भरने वाली महिलाओं में ममता आगरा, जानकी कोसी, मंजू हाथरस, डॉली जलेसर, सरला मथुरा, नेहा , रज्जो कासगंज, कलावती एटा, डॉली एटा, मधुवाला अलीगढ़, अभिनय पिदौरा, निधि हाथरस, आदि महिलाएं शामिल हुए। संस्था के संस्थापक योगेन्द्र कुमार ने कहा कि संस्था इसी प्रकार से धर्मार्थ एवं असहाय दीन दुखियों के कष्टों को दूर करने वाले कार्यों में अग्रिम रही है और भरपूर प्रयास किया जा रहा है कि संस्था के माध्यम से लोगों में र्इंश्वर के प्रति भाव उमड़ता रहे जिससे लोगों का कल्याण हो।


Saturday, 29 December 2012

सरकारें न चलाएं टीवी चैनलः ट्राई

नई दिल्ली । भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने कहा है कि केंद्र तथा राज्य सरकारों को "प्रसारण व्यवसाय" में नहीं आना चाहिए। ट्राई के इस विचार का तमिलनाडु समेत कई राज्य सरकारों पर असर हो सकता है। ट्राई ने शुक्रवार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राजनीतिक निकायों को भी प्रसारण क्षेत्र में आने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। सूचना एवं प्रसारण सचिव उदय कुमार वर्मा ने ३० नवंबर को ट्राई को एक पत्र लिखकर पूछा था कि क्या राज्य या केंद्र सरकारों या ऐसे निकायों जिस पर उनका नियंत्रण हो, को प्रसारण या चैनल चलाने की अनुमति दी जानी चाहिए।


Saturday, 22 December 2012

बैलगाडिय़ों की तरफ लौटा आगरा


आगरा। २०१२ के अंत से ठीक पहले और २०१३ के स्वागत में आगरा ने खासे बदलाव आए हैं। जगह -जगह खड़ी बैल, घोड़ा गाड़ी देखकर ऐसा लग रहा है मानों हम आधुनिक युग में नहीं बल्कि आज से ठीक पचास साल पीछे पहुंच गए हैं। एम रोड पर लगने वाले जाम से निपटने के लिए एम जी रोड से ऑटो रिक्शा का संचालन बंद कर दिया गया है। तथा उनके स्थान पर बसों का संचालन किया जा रहा है। लेकि न ऑटो चालकों ने एम जी रोड पर नहीं तो कहीं नहीं के नारे के कारण पूरे आगरा में हर एक चौराहे से ऑटो रिक्शें बंद हो चुके हैं। इसके स्थान पर चलाई जा रहीं जेनर्म की बसें सवारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं पहुंचा पा रहीं हैं। इतना ही नहीं एमजी रोड पर हर एक मिनट बाद लेकिन अन्य रूटों पर आने जाने वालों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा हैं। दुगना किराया देने के बाद भी समय से ऑफिस नहंी जा पा रहे हैं। न तो सिकंदरा से भगवान टॉकीज के लिए और न ही भगवान टॉकीज से राम बाग के लिए याता यात के लिए कोई खास इंतजाम नहीं हैं। जहां भगवान टॉकीज से रामबाग के मात्र पांच रूपए लगते थे वहां बसों द्वारा दुगना किराया यानी दस रुपए बसूले जा रहें हैं। घंटों सड़क पर खेड़ होकर बसों का इंतजार करना पड़ रहा हैं। इसी बीच घोड़ा गाडिय़ां यातायात का साधन बनती नजर आ रही है। भगवान टॉकीज का नजारा ऐसा लग रहा है मानों पुराना दौर फिर से वापस आ गया है। तेज दौड़ भाग करने वाले आगरावासी फिर से धीमी गति पकडऩे पर मजबूर हैं। तीन किलोमीटर का किराया पन्द्रह से बीस रुपए तक वसूला जा रहा है। लेकिन इस सब की परवाह बंद गाडिय़ों में चलने वाले अफसरों के पास कहां हैं। ऑटो चालकों की हड़ताल का सीधा असर मध्यम वर्ग पर पड़ा है। घर से निकलते ही जेब ढ़ीली होती जा रही है। इतना ही नहीं समय से न तो काम पर और न ही घर पर वापसी हो रही है। आगरा के हालातों को देखकर ऐसा लग रहा है मानों इस खूबसूरत शहर को किसी की नजर लग गई है।

Sunday, 2 December 2012

jago grahak jago उपभोक्ताओं के अधिकार


उपभोक्ता जाने अपने अधिकार
ठगी का षिकार बनते हैं लोग
महंगाई के कारण हो रहे हैं मिलावटखोर सक्रिय
ज्यादातर उपभोक्ताओं को नहीं पता होते अपने अधिकार
बाजार में आए दिन नई नई वैराइटी की चीजें देखने को मिल रही है। जिनके द्वारा लोगों को आसानी से ठगी का षिकार बना लिया जाता है। बढ़ती महंगाई के कारण हर कोई परेषान है। महंगाई के कारण ही मिलावटखोर और ज्यादा सक्रिय हो रहे हैं। बढ़ते बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता संस्कृति तो देखने को मिल रही है, लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी है। आज हर व्यक्ति उपभोक्ता है, चाहे वह कोई वस्तु खरीद रहा हो या फिर किसी सेवा को प्राप्त कर रहा हो। दरअसल, मुनाफाखोरी ने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह की परेशानियां पैदा कर दी हैं। वस्तुओं में मिलावट और निम्न गुणवत्ता की वजह से जहां उन्हें परेशानी होती है, वहीं सेवाओं में व्यवधान या पर्याप्त सेवा न मिलने से भी उन्हें दक्कितों का सामना करना पडता है। हालांकि सरकार कहती है, जब आप पूरी कीमत देते हैं तो कोई भी वस्तु वजन में कम न लें। बाट सही है या नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए कानून है। यह स्लोगन सरकारी दफ्तरों में देखने को मिल जाएगा। सरकार ने उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए कई कानून बनाए हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं से पूरी कीमत वसूलने के बाद उन्हें सही वस्तुएं और वाजिब सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। भारत में 24 दिसंबर राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए 24 दिसंबर, 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 लागू किया गया। इसके अलावा 15 मार्च को देश में विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत में इसकी शुरुआत 2000 से हुई।
गौरतलब है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 मेंउत्पाद और सेवाएं शामिल हैं। उत्पाद वे होते हैं, जिनका निर्माण या उत्पादन किया जाता है और जिन्हें थोक विक्रेताओं या खुदरा व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं को बेचा जाता है। सेवाओं में परिवहन, टेलीफोन, बिजली, निर्माण, बैंकिंग, बीमा, चिकित्सा-उपचार आदि शामिल हैं। आम तौर पर ये सेवाएं पेशेवर लोगों द्वारा प्रदान की जाती हैं, जैसे चिकित्सक, इंजीनियर, वास्तुकार, वकील आदि। इस अधिनियम के कई उद्देश्य हैं, जिनमें उपभोक्ताओं के हितों और अधिकारों की सुरक्षा, उपभोक्ता संरक्षण परिषदों एवं उपभोक्ता विवाद निपटान अभिकरणों की स्थापना शामिल है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया कि उपभोक्ता कौन है और किन-किन सेवाओं को इस कानून के दायरे में लाया जा सकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक, किसी भी वस्तु को कीमत देकर प्राप्त करने वाला या निर्धारित राशि का भुगतान कर किसी प्रकार की सेवा प्राप्त करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता है। अगर उसे खरीदी गई वस्तु या सेवा में कोई कमी नजर आती है तो वह जिला उपभोक्ता फोरम की मदद ले सकता है। इस अधिनियम की धारा-2 (1) (डी) के अनुबंध (2) के मुताबिक, उपभोक्ता का आशय उस व्यक्ति से है, जो किन्हीं सेवाओं को शुल्क की एवज में प्राप्त करता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 के अपने एक फैसले में कहा कि इस परिभाषा में वे व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं, जो इन सेवाओं से लाभान्वित हो रहे हों।

उपभोक्ताओं को मालूम होना चाहिए कि वे जो खा रहे हैं, उसमें क्या है, उसकी गुणवत्ता क्या है, उसकी मात्रा और शुद्धता कितनी है? उत्पादकों को भी चाहिए कि वे अपने उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी विस्तृत जानकारी दें।
- शरद पवार, केंद्रीय कृषि मंत्री
यह कानून उपभोक्ताओं के लिए एक राहत बनकर आया है। 1986 से पहले उपभोक्ताओं को दीवानी अदालतों के चक्कर लगाने पडते थे। इसमें समय के साथ-साथ धन भी ज्यादा खर्च होता था। इसके अलावा उपभोक्ताओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पडता था। इस समस्या से निपटने और उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए संसद ने जिला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर विवाद पारितोष अभिकरणों की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया। यह जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है। जम्मू-कश्मीर ने इस संबंध में अपना अलग कानून बना रखा है। इस अधिनियम के तहत तीन स्तरों पर अभिकरणों की स्थापना की गई है, जिला स्तर पर जिला मंच, राज्य स्तर पर राज्य आयोग और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग। अब उपभोक्ताओं को वकील नियुक्त करने की जरूरत नहीं है। उन्हें अदालत की फीस भी नहीं देनी पड़ती। इन अभिकरणों द्वारा उपभोक्ता का परिवाद निपटाने की सेवा पूरी तरह निरूशुल्क है। इन तीनों अभिकरणों को दो प्रकार के अधिकार हासिल हैं। पहला धन संबंधी अधिकार और दूसरा क्षेत्रीय अधिकार। जिला मंच में 20 लाख रुपये तक के वाद लाए जा सकते हैं। राज्य आयोग में 20 लाख से एक करोड रुपये तक के मामलों का निपटारा किया जा सकता है, जबकि राष्ट्रीय आयोग में एक करोड रुपये से ज्यादा के मामलों की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यह धन संबंधी अधिकार है। जिस जिले में विरोधी पक्ष अपना कारोबार चलाता है या उसका ब्रांच ऑफिस है या वहां कार्य कर रहा है तो वहां के मंच में शिकायती पत्र दिया जा सकता है। इसे क्षेत्रीय अधिकार कहते हैं। उपभोक्ता को वस्तु और सेवा के बारे में एक शिकायत देनी होती है, जो लिखित रूप में किसी भी अभिकरण में दी जा सकती है। मान लीजिए, जिला मंच को शिकायत दी गई। शिकायत पत्र देने के 21 दिनों के भीतर जिला मंच विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करेगा कि वह 30 दिनों में अपना पक्ष रखे। उसे 15 दिन अतिरिक्त दिए जा सकते हैं। जिला मंच वस्तु का नमूना प्रयोगशाला में भेजता है। इसकी फीस उपभोक्ता से ली जाती है। प्रयोगशाला 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट भेजेगी। अगर रिपोर्ट में वस्तु की गुणवत्ता में कमी साबित हो गई तो जिला मंच विरोधी पक्ष को आदेश देगा कि वह माल की त्रुटि दूर करे, वस्तु को बदले या कीमत वापस करे या नुकसान की भरपाई करे, अनुचित व्यापार बंद करे और शिकायतकर्ता को पर्याप्त खर्च दे आदि। अगर शिकायतकर्ता जिला मंच के फैसले से खुश नहीं है तो वह अपील के लिए निर्धारित शर्तें पूरी करके राज्य आयोग और राज्य आयोग के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है। इन तीनों ही अभिकरणों में दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। मंच या आयोग का आदेश न मानने पर दोषी को एक माह से लेकर तीन साल की कैद या 10 हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों सजाएं हो सकती हैं।
कुछ ही बरसों में इस कानून ने उपभोक्ताओं की समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण किरदार निभाया। इसके जरिये लोगों को शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने का साधन मिल गया। इसमें 1989, 1993 और 2002 में संशोधन किए गए, जिन्हें 15 मार्च, 2003 को लागू किया गया। संशोधनों में राष्ट्रीय आयोग और राज्यों के आयोगों की पीठ का सृजन, सर्किट पीठ का आयोजन, शिकायतों की प्रविष्टि, सूचनाएं जारी करना, शिकायतों के निपटान के लिए समय सीमा का निर्धारण, भूमि राजस्व के लिए बकाया राशियों के समान प्रमाणपत्र मामलों के माध्यम से निपटान अभिकरण द्वारा मुआवजे की वसूली का आदेश दिया जाना, निपटान अभिकरण द्वारा अंतरिम आदेश जारी करने का प्रावधान, जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना, जिला स्तर पर निपटान अभिकरण के संदर्भ में दंडात्मक न्याय क्षेत्र में संशोधन और नकली सामानध्निम्न स्तर की सेवाओं के समावेश को अनुचित व्यापार प्रथाओं के रूप में लेना आदि शामिल हैं। उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2002 के बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने उपभोक्ता संरक्षण विनियम-2005 तैयार किया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ताओं को अधिकार दिया है कि वे अपने हक के लिए आवाज उठाएं। इसी कानून का नतीजा है कि अब उपभोक्ता जागरूक हो रहे हैं। इस कानून से पहले उपभोक्ता बडी कंपनियों के खिलाफ बोलने से गुरेज करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। मिसाल के तौर पर एक उपभोक्ता ने चंडीगढ से कुरुक्षेत्र फोन शिफ्ट न होने पर रिलायंस इंडिया मोबाइल लिमिटेड के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और उसे इसमें कामयाबी मिली। इस लापरवाही के लिए उपभोक्ता अदालत ने रिलायंस पर 1।5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। इसी तरह एक उपभोक्ता ने रेलवे के एक कर्मचारी द्वारा उत्पीडित किए जाने पर भारतीय रेल के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में मामला दर्ज करा दिया। नतीजतन, उपभोक्ता अदालत ने रेलवे पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया। बीते जून माह में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने ओडिसा के बेलपहाड के पशु आहार विके्रता राजेश अग्रवाल पर एक लाख 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। मामले के मुताबिक, ओडिसा के बेलपहाड के पशुपालक राम नरेश यादव ने अगस्त 2004 में राजेश की दुकान से पशु आहार खरीदा था। इसे खाने के कुछ घंटे बाद उसकी एक भैंस, एक गाय और दो बछड़ियों ने दम तोड दिया। इसके अलावा बेल पहाड़ के जुल्फिकार अली भुट्टो की एक गाय की भी यह पशु आहार खाने से मौत हो गई। पीड़ितों द्वारा मामले की सूचना थाने में देने के बाद ब्रजराज नगर के पशु चिकित्सक लोचन जेना एवं बेलपहाड़ के पशु चिकित्सक प्रफुल्ल नायक ने भी पोस्टमार्टम के उपरांत इस बात की पुष्टि की कि पशुओं की मौत विषैला दाना खाने से हुई है। राम नरेश द्वारा क्षतिपूर्ति मांगने पर व्यवसायी ने कुछ भी देने से इंकार कर दिया। इस पर राम नरेश ने जिला उपभोक्ता अदालत की शरण ली और अदालत ने पशु आहार विक्रेता को दोषी करार दिया। इस फैसले के खिलाफ व्यापारी राजेश ने राज्य उपभोक्ता अदालत और बाद में 2007 में राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में अपील दायर की। राष्ट्रीय अदालत के जज जे एम मल्लिक और सुरेश चंद्रा की खंडपीठ ने राज्य उपभोक्ता अदालत के फैसले को सही मानते हुए व्यापारी को एक लाख बीस हजार रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ता समूहों को प्रोत्साहित करने का काम किया है। इस कानून से पहले जहां देश में सर्फि 60 उपभोक्ता समूह थे, वहीं अब उनकी तादाद हजारों में है। उन उपभोक्ता समूहों ने स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई है। सरकार ने उपभोक्ता समूहों को आर्थिक सहयोग मुहैया कराने के साथ-साथ अन्य कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं। टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन उपभोक्ताओं के लिए वरदान बनी है। देश भर के उपभोक्ता टोल फ्री नंबर 1800-11-14000 डायल कर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श ले सकते हैं। उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई जागो, ग्राहक जागो जैसी मुहिम से भी आम लोगों को उनके अधिकारों के बारे में पता चला है।
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने माना है कि राज्य सरकारें उपभोक्ता मंच और आयोग को सुविधा संपन्न बनाने के लिए केंद्र द्वारा जारी बजट का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। इस बजट का समुचित उपयोग होना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि उपभोक्ताओं को मालूम होना चाहिए कि वे जो खा रहे हैं, उसमें क्या है, उसकी गुणवत्ता क्या है, उसकी मात्रा और शुद्धता कितनी है? उत्पादकों को भी चाहिए कि वे अपने उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी विस्तृत जानकारी दें। बहरहाल, उपभोक्ताओं को खरीदारी करते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए। उपभोक्ताओं को विभिन्न आधारभूत पहलुओं जैसे अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी), सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग, उत्पादों पर भारतीय मानक संस्थान (आईएसआई) का निशान और समाप्ति की तारीख के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इसके बावजूद अगर उनके साथ धोखा होता है तो उसके खिलाफ शिकायत करने का अधिकार कानून ने उन्हें दिया है, जिसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
उपभोक्ताओं की परेशानियां
सेहत के लिए नुकसानदेह पदार्थ मिलाकर व्यापारियों द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट करना या कुछ ऐसे पदार्थ निकाल लेना, जिनके कम होने से पदार्थ की गुणवत्ता पर विपरीत असर पडता है, जैसे दूध से क्रीम निकाल कर बेचना।
टेलीविजन और पत्र-पत्रिकाओं में गुमराह करने वाले विज्ञापनों के जरिये वस्तुओं तथा सेवाओं का ग्राहकों की मांग को प्रभावित करना।
वस्तुओं की पैकिंग पर दी गई जानकारी से अलग सामग्री पैकेट के भीतर रखना।
बिक्री के बाद सेवाओं को अनुचित रूप से देना।
दोषयुक्त वस्तुओं की आपूर्ति करना।
कीमत में छुपे हुए तथ्य शामिल होना।
उत्पाद पर गलत या छुपी हुई दरें लिखना।
वस्तुओं के वजन और मापन में झूठे या निम्न स्तर के साधन इस्तेमाल करना।
थोक मात्रा में आपूर्ति करने पर वस्तुओं की गुणवत्ता में गिरावट आना।
अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) का गलत तौर पर निर्धारण करना।
एमआरपी से ज्यादाकीमत पर बेचना।
दवाओं आदि जैसे अनिवार्य उत्पादों की अनाधिकृत बिक्री उनकी समापन तिथि के बाद करना।
कमजोर उपभोक्ताएं सेवाएं, जिसके कारण उपभोक्ता को परेशानी हो।
बिक्री और सेवाओं की शर्तों और निबंधनों का पालन न करना।
उत्पाद के बारे में झूठी या अधूरी जानकारी देना।
गारंटी या वारंटी आदि को पूरा न करना।

उपभोक्ताओं के अधिकार
जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक सामान और सेवाओं के विपणन के खिला़फ सुरक्षा का अधिकार।
सामान अथवा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, स्तर और मूल्य, जैसा भी मामला हो, के बारे में जानकारी का अधिकार, ताकि उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके।
जहां तक संभव हो उचित मूल्यों पर विभिन्न प्रकार के सामान तथा सेवाओं तक पहुंच का आश्वासन।
उपभोक्ताओं के हितों पर विचार करने के लिए बनाए गए विभिन्न मंचों पर प्रतिनिधित्व का अधिकार।
अनुचित व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध निपटान का अधिकार।
सूचना संपन्न उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार।
अपने अधिकार के लिए आवाज उठाने का अधिकार।
माप-तोल के नियम

हर बाट पर निरीक्षक की मुहर होनी चाहिए।
एक साल की अवधि में मुहर का सत्यापन जरूरी है।
पत्थर, धातुओं आदि के टुकडों का बाट के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता।
फेरी वालों के अलावा किसी अन्य को तराजू हाथ में पकड कर तोलने की अनुमति नहीं है।
तराजू एक हुक या छड की सहायता से लटका होना चाहिए।
लकडी और गोल डंडी की तराजू का इस्तेमाल दंडनीय है।
कपडे मापने के मीटर के दोनों सिरों पर मुहर होनी चाहिए।
तेल एवं दूध आदि के मापों के नीचे तल्ला लटका हुआ नहीं होना चाहिए।
मिठाई, गिरीदार वस्तुओं एवं मसालों आदि की तुलाई में डिब्बे का वजन शामिल नहीं किया जा सकता।
पैकिंग वस्तुओं पर निर्माता का नाम, पता, वस्तु की शुद्ध तोल एवं कीमत कर सहित अंकित हो। साथ ही पैकिंग का साल और महीना लिखा होना चाहिए।
पैकिंग वस्तुओं पर मूल्य का स्टीकर नहीं होना चाहिए।